सुनिए भोजपुरी का यह प्रगतिशील गीत सुनील की आवाज़ में –
Thursday, July 22, 2010
Friday, July 9, 2010
एक ग़ज़ल
बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आ कर अच्छा लग रहा है. पेशे नज़र है एक ग़ज़ल --
धडकने के सिवा दिए की तरह जलता है
अँधेरी रातों में दिल और भी सुर्ख होता है
धडकने के सिवा दिए की तरह जलता है
अँधेरी रातों में दिल और भी सुर्ख होता है
हम छोड़ आये थे कहीं हसरतों का जहाँ
अब हर कदम हर गाम पे मकाँ होता है
वो कहते हैं आने वाली है फस्लेगुल
यहाँ हर शै हर जिस्म जिबह होता है
बहुत हुआ अब चुप न बैठेंगे यारों
खो गयी हैं कहीं गर्द में सितारों की राहें
फ़क़त उम्मीद से रौशन जहाँ होता है
अभिषेक मिश्रा
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