मैं था
अपने वक्तों में गले गले तक
डूबा हुआ
तुम थी
घुटनों तक
जली हुई
बहुत नायाब था
मिलना अपना
गाढ़े रेशों वाले उस समय में
घड़ी दो घड़ी
पहर दो पहर
-- अभिषेक मिश्रा
बहुत सुन्दर , ब्लागजगत में आपका हार्दिक स्वागत है .
ReplyDeleteLajawaab rachna kah de aapne is anokhe milan par.... गाढ़े रेशों वाले उस समय में...... khoobsoorat shabd sanyojan hai..swagat hai aapka
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeletewah ji wah.narayan narayan
ReplyDeletedhanyvaad doston.
ReplyDeleteएक अद्भुत रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।आपके भाव दिल में उतर गए। बहुत अच्छा लिखा है बधाई।
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