Saturday, July 11, 2009

मिलना अपना

मैं था
अपने वक्तों में गले गले तक
डूबा हुआ


तुम थी

घुटनों तक
जली हुई


बहुत नायाब था
मिलना अपना
गाढ़े रेशों वाले उस समय में

घड़ी दो घड़ी
पहर दो पहर



-- अभिषेक मिश्रा

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर , ब्लागजगत में आपका हार्दिक स्वागत है .

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  2. Lajawaab rachna kah de aapne is anokhe milan par.... गाढ़े रेशों वाले उस समय में...... khoobsoorat shabd sanyojan hai..swagat hai aapka

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  3. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।आपके भाव दिल में उतर गए। बहुत अच्छा लिखा है बधाई।

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