Wednesday, July 15, 2009

ओत्तो रेनी कास्तिलो की कवितायेँ

(प्रस्तुत हैं ग्वाटेमाला के प्रसिद्द कवि और छापामार विद्रोही ओत्तो रेनी कास्तिलो की कवितायेँ। अनुवाद कुलदीप प्रकाश का है। -- अभिषेक मिश्रा )


गैर राजनैतिक बुद्धिजीवी


एक दिन
मेरे देश के गैर राजनैतिक बुद्धिजीवियों से
हमारी जनता का सबसे साधारण आदमी
करेगा जबाब-तलब।

उनसे पूछा जायेगा
तब उन्होंने क्या किया
जब उनका देश मर रहा था एक धीमी मौत,
छोटी और अकेली आग की तरह।

कोई नहीं पूछेगा उनसे उनके कपडों के बारे में,
दोपहर के खाने के बाद उनकी लम्बी नींदों के बारे में,
कोई भी नहीं जानना चाहेगा
"अनस्तित्व के विचार" के साथ
उनकी बाँझ मुठभेडों के बारे में
उनकी श्रेष्ठ वित्तीय शिक्षा की
कोई भी फ़िक्र नहीं करेगा।

उनसे ग्रीक पुराणों के बारे में
सवाल नहीं किये जायेंगे,
न ही उनकी आत्मभर्त्सना के बारे में
जब उनके अन्दर कोई
एक कायर की मौत मरना शुरू करता है।

उनसे कुछ नहीं पूछा जायेगा
'सम्पूर्ण जीवन' की छाया में पैदा हुई
उनकी अतार्किक बहानेबाजियों के बारे में।

उस दिन
आम लोग आयेंगे
वे जिनकी कोई जगह नहीं है
गैर राजनैतिक बुद्धिजीविओं की
किताबों और कविताओं में
लेकिन जिन्होंने
रोज पैदा किये
उनके लिए पावरोटी और दूध
पराठें और अंडे
जिन्होंने उनकी कारें चलाईं,
जिन्होंने उनके कुत्तों और बगीचों की देखभाल की
और उनके लिए हर काम किया
और वे पूछेंगे :
क्या किया तुमने
जब गरीब यातनाएं सह रहे थे
जब उनके भीतर की कोमलता और जीवन धुंआ हो कर बाहर निकल रहा था ?

मेरे प्यारे देश के
गैर राजनैतिक बुद्धिजीविओं
तुम से फूटेगा नहीं कोई जवाब,
एक खामोशी का गिद्ध
तुम्हारे साहस को नोच खायेगा।
तुम्हारे खुद का कष्ट
तुम्हारी आत्मा को जकड़ लेगा।
और शर्म से तुम गूंगे हो जाओगे।



भूख और बन्दूक


तुम्हारे पास बन्दूक है
और मैं भूखा हूँ

तुम्हारे पास बन्दूक है
क्योंकि मैं भूखा हूँ

तुम्हारे पास बन्दूक है
इसलिए मैं भूखा हूँ

तुम एक बन्दूक रख सकते हो
तुम्हारे पास एक हज़ार गोलियां हो सकती हैं
और एक हज़ार और हो सकती हैं
तुम उन सब को मेरे नाचीज शरीर पर आजमा सकते हो
तुम मुझे एक, दो, तीन, दो हज़ार, सात हज़ार, बार मार सकते हो
लेकिन अंततः
मैं हमेशा तुमसे ज्यादा हथियारबंद रहूँगा

यदि तुम्हारे पास एक बन्दूक है
और मेरे पास
केवल भूख।



संतुष्टि


जो जीवन भर लड़े हैं
उनके लिए सबसे खुबसूरत चीज है
अंत पर पहुँच कर कहना
हमने भरोसा किया जनता और जीवन पर
और जीवन और जनता ने
हमें कभी नीचा नहीं दिखाया।

केवल इसी तरह से पुरुष बनते हैं पुरुष,
औरते बनती हैं औरतें,
लड़ते हुए रात और दिन
जनता और जीवन के लिए।

और जब ये जिंदगियां आती हैं ख़त्म होने को
लोग खोल देते हैं अपनी सबसे गहरी नदियों को
और समां जाते है उन पानियों में सदा के लिए।
और बन जाते हैं दूरस्थ आग की तरह, जीवित
दूसरों के लिए मिसाल बनते हुए।

जो जीवन भर लड़े हैं
उनके लिए सबसे खुबसूरत चीज है
अंत पर पहुँच कर कहना
हमने भरोसा किया जनता और जीवन पर
और जीवन और जनता ने
हमें कभी नीचा नहीं दिखाया।

8 comments:

  1. शुक्रिया भाई

    ये वे कवितायें हैं जिन्हे पढकर लगता है कि इसे मैने क्यूं नहीं लिखा?
    अगर आग्या दें तो हमकलम पर लगा लूं आभार सहित?

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  2. बिलकुल लगाइए अशोक जी .

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  3. बढिया कविताएं....अनुवाद किसका है?

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  4. अजित जी, कविताओं से पहले परिचय में ही लिखा है की अनुवाद कुलदीप प्रकाश का है.

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. उफ़ कास्तिलो।
    पहली तो पहले भी कहीं पढी़ थी। आज दो और।

    और बताइए कहा जाता है कि यहां भी कविताएं लिखी जाती हैं?

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  7. कविताओं का चयन भी और अनुवाद भी उल्लेखनिय है।

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