पूछना
मैं धरती से पूछता हूँ: कैंसे रहती है धरती, धरती के साथ ?
-- हम एक दूसरे को इज्ज़त बख्शते हैं।
मैं पानी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है पानी, पानी के साथ?
-- हम एक दूसरे में मिल जाते हैं।
मैं घास से पूछता हूँ: कैंसे रहती है घास, घास के साथ?
-- हम एक दूसरे में बुनकर
बनाते है क्षितिज।
मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?
मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?
मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?
अनुवाद: अभिषेक मिश्रा
पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। पर आते रहने को मन हो रहा है, अभी इतना ही। आते जाते तो कुछ न कुछ कहा ही जाएगा।
ReplyDeleteaapka swagat hai vijay ji
ReplyDeleteयक्ष प्रश्न...
ReplyDeleteहर पाठक से संवाद और अंदर झांकने को मजबूर करते हुए...
adbhut kavita h,
ReplyDeleteanuvad bhi achha h