Monday, July 27, 2009

हू थिंह की एक कविता

पूछना

मैं धरती से पूछता हूँ: कैंसे रहती है धरती, धरती के साथ ?
-- हम एक दूसरे को इज्ज़त बख्शते हैं।

मैं पानी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है पानी, पानी के साथ?
-- हम एक दूसरे में मिल जाते हैं।

मैं घास से पूछता हूँ: कैंसे रहती है घास, घास के साथ?
-- हम एक दूसरे में बुनकर
बनाते है क्षितिज।

मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?

मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?

मैं आदमी से पूछता हूँ: कैंसे रहता है आदमी, आदमी के साथ?

अनुवाद: अभिषेक मिश्रा

4 comments:

  1. पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। पर आते रहने को मन हो रहा है, अभी इतना ही। आते जाते तो कुछ न कुछ कहा ही जाएगा।

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  2. यक्ष प्रश्न...
    हर पाठक से संवाद और अंदर झांकने को मजबूर करते हुए...

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  3. adbhut kavita h,
    anuvad bhi achha h

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