Thursday, August 27, 2009

मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है

(बहुत दिनों से शोधकार्य में व्यस्त होने के चलते इस ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं लगा पाया। अब थोड़ा मुक्त हुआ हूँ उम्मीद है कि अब नियमित रूप से लिख पाउँगा। यहाँ पेश कर रहा हूँ बल्ली सिंह चीमा जी की एक कविता। बल्ली जी अपने लोकप्रिय जनगीतों और गजलों के लिए मशहूर हैं जब हिन्दी गजल में दुष्यंत की परम्परा की बात आती है तो कुछ नाम लिए जाते हैं परन्तु बल्ली जी को प्रायः विस्मृत कर दिया जाता है। संभवतः इसलिए के वे एक किसान हैं और काफी लो प्रोफाइल रहते हैं। हिन्दी के 'मूर्धन्य' लोगों की उन पर नज़र ही नही पड़ती। -- अभिषेक मिश्रा)

मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा
मिलकर लूटेंखायें कौन देखने वाला है
मैं
विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़
बनायें, मौज उड़ायें कौन पूछ्ने वाला है

बरगर - पीजा खाना है और शान से जीना - मरना
ऐसी
तैसी लस्सी की, अब पेप्सी कोला पीना है
डॉलर
सबका बाप है और रुपया सबका साला है
आजा
मिलकर लूटेंखायें कौन देखने वाला है

फॉरेन कपड़े पहनेंगे हम, फॉरेन खाना खायेंगे
फॉरेन
धुन पर डांस करेंगे, फॉरेन गाने गायेंगे
एनआरआई
बहनोई है, एनआरआई साला है
आजा
मिलकर लूट मचायें, कौन देखने वाला है

गंदा पानी पी लेतें हैं, सचमुच भारतवासी हैं
भूखे
रहकर जी लेते हैं, सचमुच के सन्यासी हैं
क्या
जानें ये भूखेनंगे, क्या गड़बड़ - घोटाला है
आजा
मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है

रंग बदलते कम्युनिस्टों को अपने रंग में ढ़ालेंगे
बाकी
को आतंकी कहकर किस्सा खतम कर डालेंगे
संसद
में हर कॉमरेड जपता पूजीँ की माला है
आजा
मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है

पर्वत, नदिया, जंगल, धरती जो मेरा वो तेरा है
भूखा
भारत भूखों का है, शाइनिंग इंडिया मेरा है
पूजीँ
के इस लोकतन्त्र में अपना बोलमबाला है
आजा
मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है

तेरी सेना, मेरी सेना मिलकर ये अभ्यास करें
हक़
- इन्साफ़ की बात करे जो उसका सत्यानाश करें
एक
क़रार की बात ही क्या सब नाम तेरा कर डाला है
आजा
मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है

मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा
मिलकर लूटेंखायें कौन देखने वाला है
मैं
विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़
बनायें, मौज उड़ायें कौन पूछ्ने वाला है

2 comments:

  1. बल्ली सिंह चीमा की कविता पढ़वाने का शुक्रिया।

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  2. शुक्रिया चीमा जी इस उम्दा गीत के लिए।

    पर यह पूरा सच नहीं है कि चीमा जी पूरी तरह विस्मॄत है।

    ‘मूर्धन्य’ लोगों को तो दुश्यंत भी ख़ास नहीं पचते।

    जन-संघर्षों से जुडे़ जनवादियों और लोगों के बीच चीमा जी और उनके गीत काफ़ी प्रचलित और लोकप्रिय हैं।

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